श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
श्री कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे “कृष्ण जन्माष्टमी” भी कहा जाता है, हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह त्योहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है और विशेष रूप से भारतीय संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान श्री कृष्ण, जो विष्णु के आठवें अवतार के रूप में प्रसिद्ध हैं, उनकी जन्म की रात्रि को भव्य उत्सवों और पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि
1. उपवास और स्नान
जन्माष्टमी के दिन, भक्त उपवास रखते हैं और प्रात: जल्दी उठकर स्नान करते हैं। स्नान के बाद, पवित्र वस्त्र पहन कर पूजा की तैयारी की जाती है।
2. श्री कृष्ण की पूजा
पूजा की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति या चित्र की सफाई और सजावट से होती है। भक्त श्री कृष्ण की मूर्ति को सुंदर वस्त्र पहनाते हैं और उन्हें फूल, वस्त्र, आभूषण आदि अर्पित करते हैं।
3. कृष्ण आरती
आरती भगवान श्री कृष्ण को विशेष रूप से समर्पित पूजा का एक हिस्सा है। इस दौरान भक्त दीपक जलाते हैं और गाने के साथ भगवान की आरती करते हैं। यह पूजा विशेष रूप से भगवान कृष्ण की विशेषता और उनके लीलाओं का वाचन करती है।
श्री कृष्ण की आरती के बोल:
श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।
जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।
टेर सुन दीन दुखारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
4. भजन और कीर्तन
आरती के बाद, भक्त भजन और कीर्तन का आयोजन करते हैं। यह भजन भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं, उनके जीवन और उपदेशों का वर्णन करते हैं।
5. प्रसाद वितरण
पूजा के अंत में, भगवान श्री कृष्ण को भोग अर्पित किया जाता है और इसे भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष व्रत
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन विशेष व्रत का आयोजन भी किया जाता है। इस दिन भक्त रात्रि को जागरण करते हैं और भगवान श्री कृष्ण के जन्म की घड़ी का इंतजार करते हैं। रात्रि 12 बजे के बाद भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी में ढेर सारे भजन गाए जाते हैं और प्रसाद वितरित किया जाता है।
जन्माष्टमी के विशेष पकवान
इस दिन विशेष रूप से कुछ पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से:
- माखन मिश्री: भगवान श्री कृष्ण का प्रिय पकवान, जिसमें माखन और मिश्री का मिश्रण होता है।
- खीर: दूध, चावल और मेवे का मिश्रण जो खासकर पूजा के दौरान तैयार किया जाता है।
- पनीर: पनीर के विभिन्न प्रकार के पकवान भी बनाए जाते हैं, जैसे पनीर टिक्का और पनीर पकौड़े।
सांस्कृतिक कार्यक्रम
कृष्ण जन्माष्टमी पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं, जिसमें नृत्य, नाटक और संगीत का आयोजन होता है। ये कार्यक्रम भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं और उनके जीवन को दर्शाते हैं।
निष्कर्ष
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन की पूजा विधि और विशेष आयोजन भक्तों को भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन कर देते हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। इस प्रकार, कृष्ण जन्माष्टमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक दिव्य अनुभव है जो हर भक्त को आनंदित करता है।